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त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था | Panchayti Raj System in hindi

 

पंचायती राज:-

·         वर्ष 1957 में गठित बलवंत राय मेहता समिति ने सर्वप्रथम पंचायती राज को स्थापित करने की सिफारिश की।

·         2 अक्टूबर 1959 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सर्वप्रथम राजस्थान के नागौर जिले में पंचायती राज की नींव रखी और उसी दिन से उसे संपूर्ण राजस्थान में लागू कर दिया।

·         परंतु वांछित सफलता प्राप्त न हो सकी जिस कारण अनेक समितियों का गठन किया गया जिससे पंचायती राज को मजबूती प्रदान की।

 

73 वां संविधान संशोधन अधिनियम 1993:-

·         24 अप्रैल 1993 से यह संपूर्ण भारत में लागू कर दिया गया।

·         वर्तमान में इस अधिनियम के तहत ज्यादातर राज्यों ने त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को अपनाया है।

·         पश्चिम बंगाल ने चार स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को अपनाया है।

·         भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 से 243 में पंचायती राज का विशेष उल्लेख मिलता है।

·         पंचायती राज व्यवस्था की संरचना त्रिस्तरीय है।

                      I.        शीर्ष स्तर पर जिला परिषद 

                    II.        मध्य स्तर पर पंचायत समिति और 

                   III.        निम्न स्तर पर ग्राम पंचायत

 

panchayti Raj System in hindi

I.   जिला परिषद (शीर्ष स्तर):-

·         जिला परिषद स्थानीय स्वशासन की शीर्ष संस्था है जो मध्य स्तर पर तथा ग्रामीण स्तर पर पंचायतों और प्रखंड समिति के मध्य समन्वय स्थापित करती है।

 

जिला परिषद का गठन:-

जिला परिषद के गठन में निम्न लोग शामिल होते है|

·         सामान्य तौर पर जिले की सभी पंचायत समितियों के प्रधान।

·         उस जिले के निर्वाचित संसद तथा विधानसभा सदस्य व जिला विकास अधिकारी।

·         जिला परिषद के सदस्यों में से एक को जिला परिषद का अध्यक्ष चुना जाता है।

 

कार्य एवं अधिकार:-

·         जिला परिषद एक समन्वय तथा पर्यवेक्षण करने वाला निकाय है जो निम्नलिखित कार्य को संपादित करता है।

·         पंचायत समितियों के विकास कार्यक्रमों एवं योजनाओं में समन्वय स्थापित करना।

·         पंचायत समिति में राज्य सरकार से प्राप्त अनुदान को वितरित करना।

·         पंचायत समिति को बजट योजना के अनुसार निरीक्षण तथा निर्देश देना।

 

ग्राम पंचायत संबंधी कार्य:-

·         ग्राम पंचायत, जिला परिषद राज्य सरकार तथा पंचायतों के मध्य संपर्क सूत्र का कार्य करती है।

·         पंचायतों के कार्यों की प्रगति की सूचना राज्य सरकार तक पहुंचती है तथा दिशा निर्देश जारी करती है।

·         ग्राम पंचायत प्रमुख तथा प्रधानों के सम्मेलन आयोजित करती है।

·         जिले से संबंधित कृषि तथा उत्पादन के कार्यों को योजनाबद्ध ढंग से लागू करती है।

·         राज्य सरकार या केंद्र सरकार द्वारा सौंपे गए कार्य की प्रगति का ध्यान रखती है।

·         ग्राम पंचायत विकास कार्यों के संबंध में राज्य सरकार को सलाह देना।

 

आय के साधन:-

·         जिला परिषद की आय का प्रमुख साधन राज्य सरकार से प्राप्त धनराशि है।

·         जिला परिषद को अपने दायित्वों के निर्वाह के लिए छोटे-छोटे कर लगाने का अधिकार है|

 

II.    पंचायत समिति (मध्य स्तर) :-

·         पंचायती राज की त्रिस्तरीय संरचना में मध्य स्तर पर पंचायत समिति है|

·         पंचायत समिति को क्षेत्र समिति तथा आंचलिक परिषद भी कहते हैं।

 

पंचायत समिति का गठन:-

·         पंचायत समिति का गठन संबंधित ग्राम पंचायतों के प्रमुख, कुछ महिला प्रतिनिधि, अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधि से मिलकर होता है।

·         कुछ राज्यों में कुछ सदस्य ग्राम सभा द्वारा चुने जाते हैं।

·         पंचायत समिति की अध्यक्षता के लिए प्रमुख का चुनाव किया जाता है प्रमुख को प्रधान तथा चेयरमैन के नाम से भी जाना जाता है।

 

कार्य एवं अधिकार:-

·         पंचायत समिति क्षेत्र विकास के लिए योजनाएं और कार्यक्रम बनाती है तथा राज्य सरकार की सहमति से उसे लागू करती है।

·         सामुदायिक विकास कार्यक्रम को प्रभावी रूप से क्रियान्वित करती है।

·         क्षेत्र में स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, स्वच्छता तथा संचार के विकास के लिए कार्य करती है।

·         पंचायत समिति, ग्राम पंचायतों के कार्यों का निरीक्षण करती है।

·         पंचायत समिति, ग्राम पंचायत के बजट पर विचार करती है तथा आवश्यकता पड़ने पर महत्वपूर्ण सुझाव भी देती है।

 

आय के साधन:-

  • पंचायत समिति अपने दायित्वों के निर्वाह के लिए राज्य सरकार द्वारा प्राप्त धनराशि पर निर्भर है।

 

III.   ग्राम पंचायत (निम्न स्तर) :-

·         त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था में सतही स्तर पर तीन प्रकार की संस्थाएं होती हैं।

A.   ग्राम सभा 

B.   पंचायत 

C.   न्याय पंचायत

 

A.   ग्राम सभा:-

·         ग्राम सभा अनेक छोटे-छोटे ग्रामों से मिलकर बनी सभा है|

·         यह एक स्थाई संस्था है|

·         गांव का वह प्रत्येक व्यक्ति जो 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुका है व उसका नाम वहां की मतदाता सूची में शामिल है ग्राम सभा का सदस्य होता है।

 

ग्राम सभा के कार्य:-

·         ग्रामीण स्तर पर ग्राम सभा ग्रामों के लिए नीति बनाती है।

·         गांव के विकास के लिए योजनाओं का निर्माण करती है।

·         ग्राम सभा के प्रत्यक्ष मतदान से ग्राम पंचायत का गठन किया जाता है।

 

B.   पंचायत:-

·         पंचायत का गठन ग्राम सभा के सदस्यों द्वारा होता है पंचायत के प्रमुख का चुनाव ग्राम की जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से होता है।

·         ग्राम प्रमुखों को मुखिया, सरपंच तथा प्रधान के नाम से भी संबोधित किया जाता है।

·         इस पंचायत में एक मुखिया सरपंच तथा कुछ पंच होते हैं पंचों की संख्या विभिन्न राज्यों में अलग-अलग होती है।

 

पंचायत के कार्य:-

·         पंचायत ग्राम सभा की कार्यकारी संस्था है जो 11वीं अनुसूची में वर्णित 29 विषयों पर निम्नलिखित कार्यों को संपादित करती है।

·         पंचायत के कार्यों को 3 श्रेणीयों में बनता गया है|

1)    नागरिक संबंधी कार्य

2)    जनकल्याण कार्य

3)    विकास कार्य

 

1)    नागरिक संबंधी कार्य:-

·         पंचायत नागरिकों के उत्तम स्वास्थ्य, स्वच्छ पेयजल, आवागमन के साधन, संचार व्यवस्था, शिक्षा आदि के संबंध में प्रावधान करती है।

 

2)    जनकल्याण कार्य:-

·         पंचायत कल्याण के कार्यों को प्रभावी बनाने के लिए परिवार नियोजन, जन्म पंजीकरण, मृत्यु पंजीकरण, आंगनबाड़ी योजना, कृषि तथा पशुपालन को प्रोत्साहित करने का कार्य करती है।

 

3)    विकास कार्य:-

·         पंचायत ग्रामीण विकास के लिए सड़क, कुआं, हैंडपंप, नालियां, पुलिया, आवास योजनाओं आदि का क्रियान्वयन करती है।

 

पंचायत की आय के साधन:-

·         पंचायती अपने दायित्व के निर्वाह के लिए प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करारोपण कर सकती हैं।

·         वह ग्रह कर, चुंगी कर, वाहन कर और पशु के क्रय विक्रय पर कर लगा सकती है।

·         पंचायत भवन, तालाब आदि को पट्टे पर देकर धन प्राप्त कर सकती है।

 

C.   न्याय पंचायत:-

·         न्याय पंचायत की व्यवस्था ग्राम पंचायत स्तर पर स्थानीय अपराधियों या समस्याओं से निपटने के लिए की गई है।

·         इसका गठन ग्राम पंचायत द्वारा चुने गए सदस्यों से मिलकर होता है।

 

कार्य व अधिकार:-

·         स्थानीय स्तर पर समस्याओं को निपटाया जाता है|

·         न्याय पंचायत 500 रूपये तक का जुर्माना भी कर सकती है किंतु वह कारावास की सजा नहीं सुना सकती।

·         न्याय पंचायत को गांव के छोटे-छोटे दीवानी तथा फौजदारी मामले में निर्णय देने का अधिकार है।

·         न्याय पंचायत में किसी अधिवक्ता की जरूरत नहीं होती है।

 

v  नगर पालिकाएं:-

·         स्थानीय नगर शासन में नगर पालिका प्रणाली का प्रावधान है जिसे संवैधानिक वैधता प्राप्त है।

·         74 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1993 के तहत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 (त) से 243 (य, छ) के तहत इसका विशेष उल्लेख किया गया है।

·         भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 (थ) के अनुसार तीन प्रकार की नगरी व्यवस्था का उल्लेख किया गया है। किस नगर को किस प्रारूप में रखा जाएगा यह निर्णय लेने का अधिकार संबंधित राज्य के राज्यपाल को है।

 

 

क्रं सं

नगरिया व्यवस्था

क्षेत्र

जनसँख्या

1

नगर पंचायत

ग्रामीण व शहरी दोनों के सम्मिलित रूप के लिए

10,000 – 20,000

2

नगर पालिका परिषद

छोटे छोटे नगरों के लिए

20,001 – 3,00,000

3

नगर निगम

बड़े नगरों के लिए

3 लाख से अधिक

 

 

नगर पालिका का गठन:-

·         प्रथम नगर पालिका का गठन वर्ष 1687 में मद्रास में हुआ था।

·         नगर पालिका को प्रांतीय निर्वाचन क्षेत्र में विभाजित किया जाता है जिन्हें वार्ड कहते हैं।

·         नगरपालिका के सदस्य इन वार्डों से जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से राज्य विधानमंडल की विधि अनुसार चुने जाते हैं।

 

नगर पालिका का कार्यकाल:-

·         नगर पालिका अपने पहले अधिवेशन की तारीख से 5 वर्ष तक अपने अस्तित्व में बनी रह सकती है।

·         समय से पूर्व भी इसका विघटन किया जा सकता है।

·         यदि नगर पालिका का विघटन होता है तो विकिरण की तारीख से 6 माह के अंदर उसका पुनर्गठन हो जाना चाहिए।

 

सदस्यों की योग्यताएं:-

·         वह भारत का नागरिक हो।

·         वह 21 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।

·         वह पागल या दिवालिया न हो।

·         वह सरकारी लाभ के पद पर आसीन न हो।

 

नगर पालिका के कार्यक्षेत्र:-

नगर पालिका को भारतीय संविधान की अनुसूची 12 में वर्णित 18 विषय पर कार्य करने का अधिकार प्राप्त है।

·         आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए योजनाएं बनाती है तथा उन्हें क्रियान्वित करती है।

·         नगर पालिका समाज के पिछड़े वर्ग के विकास के लिए कार्य करती है।

·         नगर पालिका विकलांग तथा मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों के हितों की रक्षा करती है।

·         नगर पालिका नगरीय सुख-सुविधाओं, सड़क सुविधा, पेयजल, सीवरेज इत्यादि की व्यवस्था करती है।

 

आय के साधन:-

राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा नगर पालिकाओं को निम्न कार्य सौंप सकता है।

·         राज्य और नगर पालिका के मध्य करो को वितरण।

·         नगर पालिका राज्य की संचित निधि से अनुदान और सभी धनराशियों के एकीकरण के लिए एक कोष का गठन कर सकता है।

·         नगर पालिका को कर व लगाना आदि वसूलने तथा उनका उपयोग करने की शक्ति प्राप्त है।

 

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