सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय की योग्यताएं एवं क्षेत्राधिकार | power and functions of supreme court and high court
सर्वोच्च न्यायालय:-
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भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 (1) के तहत 1950 में भारत में
सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई|
सर्वोच्च न्यायालय देश का शीर्ष न्यायालय है और अंतिम न्यायालय भी
है।
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भारत की न्यायिक व्यवस्था एकीकृत है।
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उच्चतम न्यायालय दिल्ली में स्थित है।
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उच्चतम न्यायालय में 1 मुख्यन्यायाधीश तथा 30 अन्य न्यायाधीश होते हैं।
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इन न्यायाधीशों की नियुक्ति
राष्ट्रपति के द्वारा होती है।
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न्यूनतम सीमा निर्धारित नहीं की गई।
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अवकाश ग्रहण करने की आयु सीमा 65 वर्ष है।
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सबसे अधिक समय तक मुख्य न्यायाधीश के
पद पर रहने वाले न्यायाधीश यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ (2696 दिन) थे।
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सबसे कम समय तक न्यायाधीश के पद पर
रहने वाले न्यायाधीश कमल नारायण सिंह (17 दिन) थे।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की
योग्यताएं:-
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वह भारत का नागरिक हो।
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न्यूनतम आयु सीमा निर्धारित नहीं की
गई।
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वह किसी उच्च न्यायालय में या दो या
दो से अधिक न्यायालयों में लगातार कम से कम 5 वर्षों तक न्यायाधीश के रूप में कार्य
कर चुका हो।
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या किसी उच्च न्यायालय आने वाले
न्यायालयों में लगातार 10 वर्षों तक अधिवक्ता रह चुका हो।
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या राष्ट्रपति की दृष्टि में कानून का
उच्च कोटि का ज्ञाता हो।
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उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश अवकाश
पत्र प्राप्त करने के बाद भारत के किसी भी न्यायालय या किसी भी अधिकारी के सामने
वकालत नहीं कर सकते।
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उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को पद
एवं गोपनीयता की शपथ राष्ट्रपति दिलाता है।
उच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार:-
प्रारंभिक क्षेत्राधिकार:-
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यह निम्न मामलों में प्राप्त है
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भारत संघ तथा एक या एक से अधिक
राज्यों के मध्य उत्पन्न विवादों में
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भारत संघ तथा कोई एक राज्य है या अनेक
राज्यों और एक या एक से अधिक राज्यों के बीच विवादों में
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दो या दो से अधिक राज्यों के बीच ऐसे
विवाद में जिसमें उनके वैधानिक अधिकारों का प्रश्न निहित है
अपीलीय क्षेत्राधिकार:-
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देश का सबसे बड़ा अपीलीय न्यायालय
उच्चतम न्यायालय हैं
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इसे भारत के सभी उच्च न्यायालय के
निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार प्राप्त है
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इसके अंतर्गत तीन प्रकार के प्रकरण
आते हैं –संविधानिक, दीवानी और फौजदारी
परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार:-
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राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह
सार्वजनिक महत्व के विवादों पर उच्चतम न्यायालय से परामर्श मांग सकता है
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न्यायालय के परामर्श को स्वीकार करना न
करना राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करता है।
पुनर्विचार संबंधी क्षेत्राधिकार:-
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सर्वोच्च न्यायालय स्वयं द्वारा दिए
गए आदेश या निर्णय पर पुनर्विचार कर सकता है तथा यदि उचित समझे तो उसमें आवश्यक
परिवर्तन कर सकता है।
अभिलेख न्यायालय:-
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सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय सब जगह
साक्षी के रूप में स्वीकार किए जाएंगे और इसकी प्रमाणिकता के विषय में प्रश्न नहीं
किया जाएगा।
मौलिक अधिकारों का रक्षक:-
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सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों की
रक्षा के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण परमादेश प्रतिषेध अधिकार पृच्छा लेख और उत्प्रेषण
के लेख जारी कर सकता है। जीने परमाधिकार रिटें कहते हैं।
उच्च न्यायालय:-
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संविधान के अनुच्छेद 214 के अनुसार प्रत्येक
राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय होगा।
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वर्तमान में भारत में 24 उच्च न्यायालय हैं।
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केंद्र शासित प्रदेशों से केवल दिल्ली
में उच्च न्यायालय है।
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उच्च न्यायालय का गठन एक मुख्य
न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों से मिलकर किया जाता है।
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न्यायाधीशों की संख्या भिन्न-भिन्न
उच्च न्यायालय में भिन्न-भिन्न होती है।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए
योग्यताएं:-
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भारत का नागरिक हो।
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कम से कम 10 वर्ष तक न्यायिक पद धारण कर चुका हो
अथवा किसी उच्च न्यायालय में या एक से अधिक उच्च न्यायालय में लगातार 10 वर्षों तक अधिवक्ता रहा हो।
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उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उस
राज्य जिसमें उच्च न्यायालय स्थित है का राज्यपाल उसके पद की शपथ दिलाता है।
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अवकाश ग्रहण करने की अधिकतम आयु सीमा 62 वर्ष है।
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उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अपने पद
से राष्ट्रपति को संबोधित कर कभी भी त्यागपत्र दे सकता है।
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जिस व्यक्ति ने उच्च न्यायालय में
स्थाई न्यायाधीश के रूप में कार्य किया है वह उच्च न्यायालय में वकालत नहीं कर
सकता किंतु वह किसी दूसरे उच्च न्यायालय में अथवा उच्चतम न्यायालय में वकालत कर
सकता है।
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राष्ट्रपति आवश्यकता अनुसार उच्च
न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि कर सकता है।
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भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श
कर राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश का स्थानांतरण किसी दूसरे उच्च
न्यायालय में कर सकता है।
उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार:-
प्रारंभिक क्षेत्राधिकार:-
· प्रत्येक उच्च न्यायालय को इच्छापत्र तलाक, विवाह, न्यायालय की अवमानना तथा कुछ राजस्व संबंधी प्रकरणों व नागरिकों के मौलिक अधिकारों के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक निर्देश विशेषकर परमाधिकार रिटें जारी करने के अधिकार प्राप्त हैं।
अपीलीय क्षेत्राधिकार:-
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फौजदारी मामलों में अगर सत्र
न्यायाधीश ने मृत्युदंड दिया हो तो उच्च न्यायालय में उसके विरुद्ध अपील की जा
सकती है।
· दीवानी मामलों में उच्च न्यायालय में उन सब मामलों की अपील हो सकती है जो 5 लाख या उससे अधिक संपत्ति के हो।
उच्च न्यायालय में मुकदमों का हस्तांतरण:-
· यदि कोई अभियोग अधीनस्थ न्यायालय में विचाराधीन है तो उच्च न्यायालय उसे अपने यहां हस्तांतरित कर सकता है और उसका निपटारा स्वयं कर सकता है।
प्रशासकीय अधिकार:-
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उच्च न्यायालयों को अपने अधीनस्थ
न्यायालयों मैं नियुक्त पदावली की पदोन्नति तथा छुट्टियों के संबंध में नियम बनाने
का अधिकार है।
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