भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्य और राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व और परमाधिकार रिटें | fundamental duties
इस ब्लॉग में हम परमाधिकार रिटें, मौलिक अधिकारों का निलंबन, मौलिक कर्तव्य व राज्य के नीति निर्देशक तत्व आदि के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे| इससे पहले के ब्लॉग में हमने भारतीय नागरिक के मौलिक अधिकारों और मौलिक अधिकारों के प्रकार के बारे में पढ़ा|
1.
परमाधिकार
रिटें
a.
बंदी प्रत्यक्षीकरण
b.
परमादेश
c.
प्रतिषेध
d.
उत्प्रेषण
e.
अधिकार
पृच्छा
2.
मौलिक
अधिकारों का निलंबन (अनुच्छेद 20 एवं 21)
3.
मौलिक
कर्तव्य (भाग 4 का अनुच्छेद 51)
4.
राज्य के
नीति निर्देशक तत्व (अनुच्छेद 36 से 51)
·
अनुच्छेद
32 के अंतर्गत
सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय को नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के
लिए रिट याचिका जारी करने का अधिकार प्राप्त है।
·
भारतीय
संविधान का अनुच्छेद 32 संविधान
का आधारभूत लक्षण है संविधान में संशोधन कर इसे निरसित नहीं किया जा सकता।
·
कोई
नागरिक सीधे सर्वोच्च न्यायालय की शरण ले सकता है यह आवश्यक नहीं कि वे पहले उच्च
न्यायालय जाए।
·
अनुच्छेद
226 के अंतर्गत मौलिक अधिकारों के हनन
होने के अलावा भी उच्च न्यायालय रिट जारी कर सकता है।
इसके अंतर्गत सर्वोच्च
न्यायालय बंदी बनाने वाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बंदी बनाए गए व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर न्यायालय के समक्ष पेश
करें जिससे बंदी बनाए जाने के औचित्य की जांच की जा सके।
B. परमादेश
यह लेख उस पदाधिकारी को
जारी किया जाता है जो अपने सार्वजनिक कर्तव्य से विमुख हो गया है जिससे वह अपने
कर्तव्य का पालन कर सकें।
C. प्रतिषेध
इसके अंतर्गत शीर्ष
न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय को उसके क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर किसी भी मामले पर
कार्यवाही करने से रोकता है जिससे किसी नागरिक के साथ अन्याय न हो।
D. उत्प्रेषण
यह लेख सर्वोच्च एवं उच्च
न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालय को जारी किया जाता है और आदेश दिया जाता है कि
किसी लंबित मुकदमे के न्याय निर्णयन के लिए उसे वरिष्ठ न्यायालय को भेजा जाए।
E. अधिकार पृच्छा
यह लेख सर्वोच्च या उच्च
न्यायालय द्वारा उसे जारी किया जाता है जो ऐसे पदाधिकारी के रूप में कार्य करने
लगता है जिस रूप में कार्य करने का उसे वैद्यानिक अधिकार प्राप्त नहीं है।
न्यायालय इस लेख के माध्यम से उस व्यक्ति से पूछता है कि वह किस अधिकार से यह कार्य कर रहा है।
2. मौलिक अधिकारों का निलंबन:-
विशेष स्थिति या आपातकाल
में मौलिक अधिकारों को सीमित किया जा सकता है क्योंकि नागरिक अधिकार चाहे कितने भी
आधारभूत क्यों ना हो देश की सुरक्षा और जनकल्याण से ऊपर नहीं हो सकते।
अतः यदि आपातकाल की घोषणा की जाती है तो राष्ट्रपति
किसी एक या समस्त मौलिक अधिकारों को निलंबित कर सकता है।
अनुच्छेद 20 एवं अनुच्छेद 21 के प्रवर्तन को आपातकाल के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता।
3.
मौलिक
कर्तव्य :-
·
मौलिक
कर्तव्य भारतीय नागरिकों के लिए दायित्व प्रस्तुत करते हैं।
·
देश
अपने नागरिकों से अपेक्षा करता है कि वे राष्ट्र के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए
सक्रिय योगदान दें।
·
भारतीय
संविधान में मौलिक कर्तव्य को सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत
समाहित किया गया है|
·
यह
संकल्पना पूर्व सोवियत संघ रूस से ली गई है।
·
संविधान
का अनुच्छेद 51 मौलिक कर्तव्य का प्रावधान करता है
·
भारतीय
संविधान के भाग 4 के
अनुच्छेद 51 को के तहत भारतीय नागरिकों के लिए निम्न प्रकार
के मौलिक कर्तव्य का निर्धारण किया गया है।
1. भारतीय नागरिकों का यह मौलिक कर्तव्य होगा कि वह भारतीय
संविधान का पालन, संविधान के
आदर्शों संस्थाओं राष्ट्रीय ध्वज है तथा राष्ट्रीय गान का सम्मान करें।
2. देश की संप्रभुता एकता तथा अखंडता की रक्षा करें तथा
इसे 10 बनाए रखें।
3. राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित करने वाले
आदर्शों को आत्मसात करें तथा उनका अनुपालन करें।
4. देश की रक्षा करें तथा बुलाए जाने पर राष्ट्र की सेवा
के लिए तैयार रहें।
5. धर्म भाषा प्रदेश या जाति वर्ग से परे होकर समरसता और
मातृत्व की भावना का विकास करें।
6. भारतीय संस्कृति की समृद्ध परंपरा की रक्षा करें तथा
उसे बढ़ावा दे।
7. प्राकृतिक पर्यावरण जैसे वन झील नदी आदि की रक्षा करें
एवं उनका संवर्धन करें।
8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाते हुए मानव वादी दृष्टिकोण
रखें तथा ज्ञानार्जन व सुधारवादी भावना का विकास करें।
9. सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करें अहिंसात्मक विचार को
आत्मसात कर हिंसा से दूर रहें।
10. राष्ट्र की प्रगति में व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से सभी
क्षेत्रों में उत्कृष्ट के लिए निरंतर प्रयत्न करें।
11. 6 से 14 वर्ष तक की
उम्र के अपने बच्चे या प्रीति पालने के लिए शिक्षा का अवसर प्रदान करें।
4.
राज्य के
नीति निर्देशक तत्व:-
भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 36 से 51 में राज्य के लिए नीति निर्देशित करने वाले तत्वों का उल्लेख किया गया है।यह संकल्पना आयरलैंड के संविधान से अभिप्रेरित है। इसका वर्णन निचे दिया गया है|
अनुच्छेद 36 में राज्य के नीति निर्देशक तत्व की परिभाषा दी गई है।
अनुच्छेद 37 में अंतर विशीष्ट
तत्वों का लागू होना दर्शाया गया है।
अनुच्छेद 38 के अंतर्गत
राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाना तथा भारतीय नागरिकों
को सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय प्रदान करना शामिल है।
अनुच्छेद 39 में राज्य
का यह कर्तव्य है कि वह समान कार्य के लिए समान वेतन प्रदान करें।
अनुच्छेद 40 के अंतर्गत
राज्यों को निर्देश दिया गया है कि वह ग्राम पंचायत की स्थापना करें।
अनुच्छेद 41 के अंतर्गत
राज्य का दायित्व है कि वह कुछ दशाओं में नागरिकों को काम, शिक्षा और जन सहायता
पाने का अधिकार सुनिश्चित करें।
अनुच्छेद 42 एवं 43 के अंतर्गत प्रावधान किया गया है कि
राज्य कामगारों को निर्वाह मजदूरी काम की मनोचित दशाएं, प्रसूति
सहायता आदि प्रदान करे।
अनुच्छेद 44 के अंतर्गत
राज्यों से अपेक्षा की जाती है कि वह सभी नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता का
निर्माण करें।
अनुच्छेद 45 के अंतर्गत
राज्य को निर्देश दिया गया है कि वह 6 वर्ष तक की आयु के सभी
बच्चों को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराएं।
अनुच्छेद 46 के अंतर्गत
अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्ग को शिक्षित और आर्थिक
अभिवृद्धि करना राज्य का कर्तव्य है।
अनुच्छेद 47 के अंतर्गत
यह राज्य का दायित्व है कि वह लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने हेतु उनके पोषाहार
तथा जन स्वास्थ्य में सुधार करें।
अनुच्छेद 48 के अंतर्गत राज्य
का यह दायित्व है कि वह कृषि और पशुपालन को प्रोत्साहन दें|
अनुच्छेद 49 के अंतर्गत
राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों स्थानों तथा वस्तुओं का संरक्षण करना राज्य का
कर्तव्य है।
अनुच्छेद 50 के अंतर्गत
कार्यपालिका व न्यायपालिका के कार्य क्षेत्र को सुनिश्चित किया गया है।
अनुच्छेद 51 के अंतर्गत
का राज्य का यह कर्तव्य होगा कि वह अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने का
प्रयत्न करें।
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