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भूगोल - ब्रह्मांड की उत्पत्ति व पृथ्वी की आंतरिक संरचना, अक्षांश एवं देशांतर रेखाएं, संक्रांति आदि

 भूगोल :-

भूगोल वह शास्त्र है जिसके द्वारा पृथ्वी के ऊपरी स्वरुप और उसके प्राकृतिक विभागों (जैसे पहाड़देशनगरनदीसमुद्रझीलडमरुमध्यवन आदि) का ज्ञान होता है।

  1. ब्रह्माड
  2. ब्रह्मांड की उत्पत्ति से संबंधित चार प्रमुख सिद्धांत
  3. मंदाकिनी
  4. तारामंडल
  5. सौरमंडल
  6. सौरमंडल के पिंड
  7. पृथ्वी और उसका सौर्यिक संबंध

     घुर्णन (Rotation) या दैनिक गति

     परिक्रमण (Revolution) या वार्षिक गति

8.    उपसौर (Perihelion)

9.     अपसौर (Aphelion)

10.    एप्साइड रेखा

11.    अक्षांश एवं देशांतर रेखाएं

     अक्षांश रेखाएं (Latitude)

     देशांतर रेखाएं (Longitude)

12.    संक्रांति (Solstice)

     कर्क संक्रांति (Cancer Solstice)

     मकर संक्रांति (Capricorn Solstice)

13.    पृथ्वी की आंतरिक संरचना

     भू-पर्पटी (Crust)

     मेंटल(Mantle)

     केंद्रीय भाग (Core)

14.    अन्य पॉइंट

     कोनराड असंबद्धता

     मोहविसिक डिस्कंटीन्यूटी

     रेपेटी असंबद्धता

     गुटेनबर्ग विशार्टअसंबद्धतआ

     लेहमैन असंबद्धता

 

  1. ब्रह्मांड :-

सूक्ष्मतम अणुओं से लेकर लेकर महाकाय आकाश गंगाओं तक के सम्मिलित स्वरुप को ब्रहमांड कहा जाता है |

     ब्रह्मांड का व्यास - 108 प्रकाशवर्ष

     ब्रह्मांड में लगभग 100 अरब मंदाकिनी है और प्रत्येक मंदाकिनी में लगभग 100 अरब तारे होते हैं।

 

2. ब्रह्मांड की उत्पत्ति से संबंधित चार प्रमुख सिद्धांत :-

1. महा विस्फोट सिद्धांत (big bang theory) :- ऐब जार्ज लैमेन्तेयर

2. साम्यावस्था या सतत सृष्टी सिद्धांत या स्थिर अवस्था संकल्पना (steady state theory) :- थाम्स गोल्ड एवं हर्मन बॉडी

3. दोलन सिद्धांत (pulsating universe theory) :- डॉ एलन संडेजा

4. स्फीती सिद्धांत (inflationary theory):- अलेन गुथ

 

3. मंदाकिनी :-

     तारों का ऐसा समूह जो धुंधला सा दिखाई पड़ता है |

     यह तारा निर्माण प्रक्रिया की शुरुआत का गैसपुंज है |

     हमारी पृथ्वी की अपनी एक मंदाकिनी है जिसे दुग्धमेखला या आकाशगंगा कहते हैं| इस मंदाकिनी का 80% भाग सर्पीला है सबसे पहले इसे गैलीलियो ने देखा था |

     सबसे नजदीकी मंदाकिनी - देवयानी (Andromeda)

     सबसे नवीनतम ज्ञात मंदाकिनी - ड्वार्फ मंदाकिनी

     ऑरियन नेबुला - हमारी आकाशगंगा के सबसे शीतल और चमकीले तारों का समूह है |

 

 

4. तारामंडल :-

     तारों का समूह जैसे उर्सा मेजर, मृग, सिग्नस, हाइड्रा तारामंडल कहलाता है|

     साइरस पृथ्वी से देखा जाने वाला सर्वाधिक चमकीला तारा है|

     वामन तारे वे तारे है जिनका प्रकाश सूर्य से कम है |

     विशाल तारे वे तारे है जिनका प्रकाश सूर्य से अधिक है |

     तारे की मृत्यु तब होती है जब तारे में हाइड्रोजन समाप्त हो जाती है |

 

5. सौरमंडल :-

सूर्य के चारों और चक्कर लगाने वाले विभिन्न ग्रहों, क्षुद्रग्रहों, धूमकेतु, उल्काओं तथा अन्य आकाशीय पिंडों के समूह को सॏरमंडल कहते हैं। सौरमंडल में सूर्य का प्रभुत्व है और सूर्य ही ऊर्जा का स्त्रोत है।

सूर्य :-

     सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुंचने में लगा समय 8 मिनट 16.6 सेकेंड |

     सूर्य हमारी मंदाकिनी दुग्धमेखला के केंद्र से लगभग 30,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर एक कोने में स्थित है |

     सूर्य एक गैसीय गोला है जिसमें हाइड्रोजन 71%  हिलियम 26.5% व अन्य तत्व 2.5% है|

     4 हाइड्रोजन नाभिक मिलकर 1 हिलियम नाभिक का निर्माण करते है |

     अर्थात सूर्य के केंद्र पर नाभिकीय संलयन होता है जो सूर्य की ऊर्जा का स्त्रोत है|

 

6. सौरमंडल के पिंड :-

  1. परंपरागत ग्रह :-

बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण

2.      बौने ग्रह :-

प्लूटो, चेरान, सेरस, 2003 यूबी 313

3.      लघु सौरमंडलीय पिंड :-

 

 

1.      क्षुद्रग्रह (Asteroid):-

·         मंगल एवं वृह्पति गृह की कक्षाओं के बीच छोटे छोटे आकाशिए पिंड जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं क्षुद्रग्रह (Asteroid) कहलाते हैं|

·         जब पृथ्वी से टकराते है तो पृथ्वी की सतह पर विशाल गर्त बन जाते है महाराष्ट्र में लोनार झील एक एसा ही गर्त है|

·         सबसे पहले देखा गया सिरस (Cirus) है|

 

2.      धूमकेतु (Comet):-

·         धूमकेतु (Comet) गैस और धुल के संग्रह हैं जो आकाश में लम्बी चमकदार पूँछ सहित प्रकाश के चमकीले गोले के रूप में दिखाई देते हैं इसके कारण इस पूछल तारा भी कहते है|

 

 

3.      उल्का (Meteor) एवं अन्य छोटे खगोलीय पिंड:-

·         उल्काएं (Meteor) क्षुद्रग्रहों के टुकड़े तथा धूमकेतुओ द्वारा पीछे छोड़े गए धुल के कण होते हैं|

·         उल्काएँ प्रथ्वी के वायुमंडल में पहुँचते ही जलने लगती है ये पिंड टूटे तारे जेसे लगते हैं इन्हें उल्का कहते हैं|

·         जो उल्काएँ प्रथ्वी के वायुमंडल में पहुँचते ही नही जलती और धरातल पर आकर गिर जाती है उन्हें उल्का पिंड कहते है|

 

  1. पार्थिव या आंतरिक ग्रह :-

बुध > शुक्र > पृथ्वी > मंगल

2.      बृहस्पति या बाह्य ग्रह :-

बृहस्पति > शनि > अरुण > वरुण

3.      सूर्य से दूरी के अनुसार ग्रहों का क्रम :-

बुध > शुक्र > पृथ्वी > मंगल > बृहस्पति > शनि > अरुण > वरुण

4.      आकार के अनुसार ग्रहों का क्रम (घटते क्रम में):-

बृहस्पति > शनि > अरुण > वरुण > पृथ्वी > शुक्र > मंगल > बुध

 

i. बुद्ध (Mercury) :-

     सूर्य का सबसे नजदीकी ग्रह बुध है|

     बुध सबसे छोटा ग्रह जिसके पास अपना कोई उपग्रह नहीं है।

     इस पर चुंबकीय क्षेत्र उपस्थित है।

     बुध पर तापांतर सबसे अधिक 600° C है|

     दिन का तापमान 427° C व रात का तापमान -173° C तक हो जाता है|

 

ii. शुक्र (Venus) :-

     पृथ्वी का निकटतम गृह शुक्र है|

     शुक्र सबसे चमकीला और सबसे गर्म ग्रह है|

     इसे सांझ का तारा या भोर का तारा भी कहते हैं|

     शुक्र और अरुण ये दो गृह पूर्व से पश्चिम की ओर दक्षिणावर्त (clockwise) घूमते है| जबकि बाकि सभी गृह पश्चिम से पूर्व की ओर वामावर्त (Anticlockwise) घूमते है|

     पृथ्वी का भगिनी ग्रह भी कहते हैं|

     इसके पास कोई उपग्रह नहीं है|

     इसके वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड (97%) की प्रचुरता है जो एक ग्रीनहाउस गैस है|

 

iii. पृथ्वी (Earth) :-

     आकार में पांचवा सबसे बड़ा ग्रह है|

     जल की उपस्थिति की कारण इसे नीला ग्रह भी कहते हैं|  

     प्रथ्वी का एकमात्र उपग्रह चंद्रमा है|

     सूर्य की परिक्रमा करने में प्रथ्वी को 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट 46 सेकंड का समय लगता है|

     पृथ्वी अपने अक्ष पर झुकी हुई है जिस कारण यहाँ दिन व रात होता है  इसी कारण ऋतु परिवर्तन भी होता है

     आकार एवं बनावट की दृष्टि से प्रथ्वी शुक्र के समान है|

     सूर्य के बाद पृथ्वी का सबसे निकटतम तारा प्रॉक्सिमा सेंचुरी है |

 

iv. मंगल (Mars) :-

     मंगल को लाल गृह भी कहते हैं इसका लाल रंग आयरन ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण होता है|  

     यहां पृथ्वी के समान दो ध्रुव है तथा इसका कक्षातली 25 डिग्री के कोण पर झुका हुआ है जिस कारण यहां पृथ्वी के समान ऋतु परिवर्तन होता है|

     मंगल गृह के 2 उपग्रह हैं फोबोस (Phobos) तथा डीमोस (Deimos) |

     सौरमंडल का सबसे बड़ा ज्वालामुखी - ऑलिपस मेसी, मंगल गृह पर उपस्थित है|

     सौरमंडल का सबसे ऊंचा पर्वत - निक्स ओलंपिया (Nix Olympia) है यह भी मंगल गृह पर स्थित है|

 

v. बृहस्पति (Jupiter) :-

     बृहस्पति पीला रंग का गृह है |

     यह सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है|

     इसके कुल 67 गृह है सभी 67 ग्रहों में सबसे बड़ा उपग्रह – ग्यानीमीड  है|

 

vi. शनि (Saturn) :-

     यह आकाश में पीले तारे के समान दिखाई देता है |

     इसके तल के चारों ओर सात वलय हैं |

     इसके 62 उपग्रह है इन 62 उपग्रहों में सबसे बड़ा उपग्रह टाइटन है|

     शनि गृह का घनत्व जल से भी कम है यानी यह जल में रखने पर तैरने लगेगा |

 

vii. अरुण (Uranus) :-

     अरुण गृह का तापमान लगभग -215 ° C होता है |

     शुक्र की तरह पूर्व से पश्चिम की ओर दक्षिणावर्त (clockwise) घूमता है |

     अपनी धुरी पर सूर्य की ओर इतना झुका है कि इसे लेटा हुआ ग्रह भी कहते हैं|

     अरुण का सबसे बड़ा उपग्रह टाइटेनिया (Titania) है |

     इसके चारों ओर 9 वाले है इन 9 वलयों में से पांच वलयों का नाम अल्फा बीटा गामा डेल्टा एवं इप्सिलोन है |

 

vii. वरुण (Neptune) :-

     वरुण हरे रंग का ग्रह है|

     इसके चारों ओर अति शीतल मीथेन का बादल छाया है |

     इसके 8 उपग्रहों है जिनमें टि्टॉन (Triton) प्रमुख है |

 

7.      पृथ्वी और उसका सौर्यिक संबंध :-

पृथ्वी की दो गतियां है |

  1. घुर्णन (Rotation) या दैनिक गति :-

पृथ्वी सदैव अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती ह| जिस कारण दिन व रात होते हैं| इसे दैनिक गति कहते हैं |

2.      परिक्रमण (Revolution) या वार्षिक गति :-

पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमने के साथ साथ सूर्य के चारों ओर एक दीर्घ वृत्तीय मार्ग में परिक्रमा करती है| इसे वार्षिक गति कहते हैं |

 

8.    उपसौर (Perihelion) :-

जब  पृथ्वी दीर्घवृत्तीय परिक्रमा करते हुए सूर्य के अत्यधिक पास होती है तो उसे उपसौर कहते है| यह 3 जनवरी को होता है|

 

9.    अपसौर (Aphelion) :-

जब पृथ्वी दीर्घवृत्तीय परिक्रमा करते हुए सूर्य से अत्यधिक दूर होती है तो उसे अपसौर कहते हैं| यह 4 जुलाई को होता है|

 

10.    एप्साइड रेखा :-

उपसौर व अपसौर मिलाने वाली काल्पनिक रेखा जो सूर्य के केंद्र से गुजरती है उसे ऐप्साइड रेखा कहते हैं|

 

11. अक्षांश (Latitude) व देशांतर (Longitude) :-

     पृथ्वी में किसी स्थान की भौगोलिक स्थिति का निर्धारण अक्षांश (latitude) और देशांतर (Longitude) रेखाओं द्वारा किया जाता है।

     किसी स्थान का अक्षांश (latitude), धरातल पर उस स्थान की उत्तर से दक्षिण" की स्थिति को तथा किसी स्थान का देशांतर (Longitude), धरातल पर उस स्थान की पूर्व से पश्चिम" की स्थिति को प्रदर्शित करता है।

 

I. अक्षांश रेखाएं (Latitude) :-  

latitude lines


     काल्पनिक रेखाएं जो पृथ्वी के चारों ओर पूर्व से पश्चिम दिशा में विषुवत रेखा के समानांतर खींची जाती है अक्षांश रेखाएं कहलाती है।

     विषुवत रेखा पृथ्वी के मध्य सतह से होकर जाने वाली वह अक्षांश रेखा है जो उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव से बराबर दूरी पर होती है|

     विषुवत रेखा के उत्तरी भाग को उत्तरी गोलार्ध और दक्षिणी भाग को दक्षिणी गोलार्ध कहते है |

     भूमध्य रेखा अक्षांश रेखा है |

     दो अक्षांश रेखाओं के मध्य की दूरी 111 किलोमीटर होती है |

     भूमध्य रेखा के उत्तर में 23.5 डिग्री अक्षांश को कर्क रेखा और दक्षिण में 23.5 डिग्री अक्षांश को मकर रेखा कहते है |

     भूमध्य रेखा के उत्तर में 62.5 डिग्री अक्षांश को आर्कटिक वृत और दक्षिण में 62.5 डिग्री अक्षांश को अंटार्कटिक वृत कहते हैं |

 

II. देशांतर रेखाएं (Longitude) :- 

longitude lines


     उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा को देशांतर रेखा कहते हैं|

     देशांतर रेखाओं की लंबाई बराबर होती है|

     देशांतर रेखाएं समानांतर नहीं होती |

     यह रेखाएं उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव पर एक बिंदु पर मिल जाती हैं|

     विषुवत रेखा की ओर बढ़ने पर देशांतर ओं के बीच की दूरी बढ़ जाती है |

     विषुवत रेखा पर इसके बीच की दूरी अधिकतम 111.32 किमी होती है |

     देशांतर की दूरी तय करने में पृथ्वी को 4 मिनट का समय लगता है |

     दो देशांतर रेखाओं के बीच की दूरी को गोरे (Gore) नाम से जाना जाता है |

     ग्रीनविच देशांतर रेखा को प्रधान मध्याह्न रेखा कहा जाता है |

     इस देशांतर का मान है |

     प्रधान मध्याह्न रेखा के बाई और की रेखाएं पश्चिमी देशांतर और दाहिने और की रेखाएं पूर्वी देशांतर कहलाती है |

 

12. संक्रांति (Solstice) :-

सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन की सीमा को संक्रांति कहते हैं |

  1. कर्क संक्रांति (Cancer Solstice) :-

21 जून को सूर्य कर्क रेखा पर लंबवत होता है इसे कर्क संक्रांति कहते हैं इस दिन उत्तरी गोलार्ध में सबसे बड़ा दिन होता है |

      II.            मकर संक्रांति (Capricorn Solstice) :-

22 दिसंबर को सूर्य मकर रेखा पर लंबवत होता है इसे मकर संक्रांति कहते हैं इस दिन दक्षिणी गोलार्ध में सबसे बड़ा दिन होता है |

 

13. पृथ्वी की आंतरिक संरचना :-

internal structure of earth


i.   भू-पर्पटी (Crust) :-

     पृथ्वी के अंदर 34 किमी तक का क्षेत्र भू-पर्पटी कहलाता है|

     बेसाल्ट चट्टानों से बना है जिसके दो भाग हैं|

     सियाल (SiAl) :- जिसमे सिलिकॉन व एलुमिना की बहुलता पी जाती है|

     सीमा (SiMa) :- जिसमे सिलिकॉन व मैग्नीशियम की बहुलता पी जाती है|

     यह पृथ्वी के कुल आयतन का 0.5% भाग घेरे हुए है |

 

ii. मेंटल (Mantle) :-

     पृथ्वी के अंदर 2900 कि मी तक का क्षेत्र मेंटल (Mantle) कहलाता है|

     यह बेसाल्ट चट्टानों से बना है|

     इसमें मैग्मा चेंबर पाए जाते हैं |

     यह पृथ्वी के कुल आयतन का 83% भाग घेरे हुए है|

 

iii. केंद्रीय भाग (Core) :-

     यह निकेल व फेरस का बना है|

     यह द्रव अवस्था में है|

     पृथ्वी के कुल आयतन का 16% भाग घेरे हुए है|

 

     कोनराड असंबद्धता :-

ऊपरी क्रस्ट एवं निचले क्रस्ट के बीच के भाग को कोनराड असंबद्धता कहते हैं|

 

     मोहविसिक डिस्कंटीन्यूटी :-

      क्रस्ट एवं मेंटल के बीच के बीच के भाग को मोहविसिक डिस्कंटीन्यूटी कहते हैं|

 

     रेपेटी असंबद्धता :-

ऊपरी मेंटल एवं निचले मेंटल के बीच के भाग को रेपेटी असंबद्धता कहते हैं|

 

     गुटेनबर्ग विशार्ट असंबद्धता :-

निचले मेंटल तथा ऊपरी क्रोड के बीच के भाग को गुटेनबर्ग विशार्ट असंबद्धता कहते हैं|

 

     लेहमैन असंबद्धता :-

बाह्य क्रोड तथा आंतरिक क्रोड के बीच के भाग को लेहमैन असंबद्धता कहते हैं|


इस प्रकार हमने ब्रह्माण्ड व प्रथ्वी की आंतरिक संरचना इत्यादि क बारे में पढ़ा | आश है आपको यह लेख पसंद आया होगा | 



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